91 वर्ष की उम्र में भी शिक्षा का दीप जलातीं कमला पालीवाल: ज्ञान और प्रेरणा की अमर गाथा

प्रभात संवाद, 8 मार्च, जयपुर। जो महिलाएं परिस्थितियों को लेकर अपने कदम आगे बढाने से कतराती हैं उनके लिए प्रेरणा का काम कर रही हैं 91 वर्षीय श्रीमती कमला। हालात और परिस्थितियां किसी भी समय हमारे पक्ष में नहीं होती हैं उन्हें हमे अपने अनुकूल बनाना होता हैं। इसका जीता जागता उदाहरण हैं शिक्षाविद कमला। इनका जीवन किसी भी महिला के लिए प्रेरणा स्वरुप बन गया है। एक व्यक्तित्व, जिसने शिक्षा को अपना धर्म और समर्पण को अपना कर्म बना लिया है। यह कहानी है श्रीमती कमला पालीवाल की जो 91 वर्ष की उम्र में भी शिक्षा का अमर दीप जलाए हुए हैं। हिंदी साहित्य में एमए और शिक्षा में बीएड करने वाली श्रीमती पालीवाल उस परंपरा की वाहक हैं, जो ज्ञान को जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य मानती है।
1952: जब समाज की बेडियों को तोडकर इतिहास रचा गया: आजादी के बाद 1952 का भारत, जहां महिलाओं की शिक्षा एक स्वप्न मात्र थी। उस दौर में कमला पालीवाल ने अपनी दृढ इच्छाशक्ति और ज्ञान के प्रति अथाह प्रेम से हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण कर इतिहास रच दिया। वे अपने समाज की पहली महिला बनीं, जिन्होंने यह उपलब्धि हासिल की। राजपूताना विष्वविद्यालय द्वारा आयोजित परीक्षा को पास करना उस युग की महिलाओं के लिए केवल एक व्यक्तिगत विजय नहीं थी। बल्कि यह सामाजिक बेडियों को तोडने का ऐलान था।

ज्ञान का अथाह सागर: श्रीमती पालीवाल का ज्ञान केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उन्होंने इसे अपने 37 वर्षों के सेवा काल में हजारो के जीवन में बांटा। 1993 में स्कूल शिक्षा व्याख्याता ग्रेड से सेवानिवृत्त होने के बाद भी उनका यह ज्ञान का भंडार समाज को सींचता आ रहा है।
सेवानिवृत्त के बाद भी शिक्षा की अमिट साधना:
ज्हां अधिकांश लोग सेवानिवृत्ति के बाद जीवन को विराम मानते हैं, वहीं कमला जी के लिए यह नई शुरुआत थी। आज भी वे शोधार्थियों और काॅलेज छात्रों को हिन्दी साहित्य और इतिहास की गहराईयों से परिचित कराती हैं। उनकी वाणी में सरलता, उनकी शैली में आत्मीयता और उनके शब्दो में अनुभव की गरिमा है।

उदयपुर से कोटा तक: शिक्षा के एक युग की यात्रा:
कमला पालीवाल का जन्म राजस्थान की सांस्कृतिक नगरी उदयपुर में हुआ। लेकिन 1957 में सरकारी सेवा के चलते वे कोटा आ गई। कोटा की यह धरती, जो शिक्षा का केन्द्र मानी जाती है, उनके ज्ञान से और अधिक गौरवशाली हो गई। वे आज भी कोटा में रहकर अपनी ज्ञान धारा को प्रवाहित कर रही है।

परिवार: प्रेरणा और संबल: उनकी इस ज्ञान यात्रा में उनके पति का योगदान अमूल्य रहा। राजस्थान सरकार में ड्राइंग षिक्षक के रुप में सेवा करने के बाद रेलवे में मुख्य आरक्षण पर्यवेक्षक के पद से सेवानिवृत्त उनके पति ने हमेशा उन्हें प्रोत्साहित किया। उनके छोटे पुत्र जो वर्तमान में रेलवे में कार्यरत हैं, उनके साथ रहते हैं और प्रेरणादायक यात्रा में उनका सहारा बने हुए हैं।

महिलाओं के लिए अमिट प्रेरणा:
कमला पालीवाल का जीवन उन महिलाओं के लिए एक अमिट प्रेरणा हैं जो उम्र को अपने सपनों की राह में बाधा मानती हैं। वे यह सिखाती हैं कि शिक्षा केवल आत्मसात करने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि समाज में परिवर्तन लाने का सबसे प्रभावी माध्यम है। उनका जीवन हमें यह संदेश देता हैं कि यदि जिजीविषा प्रबल हो तो उम्र और परिस्थिति कभी भी लक्ष्य के रास्ते में बाधा नहीं बन सकती है। वे यह साबित करती हैं कि ज्ञान की यात्रा का कोई अंत नहीं होता।

शिक्षा की अमर ज्योति: श्रीमती कमला आज भी हमें यह सिखाती हैं कि सीखने और सिखाने की प्रक्रिया को कभी थमने नहीं देना चाहिए। वे केवल एक शिक्षिका नहीं, बल्कि एक ऐसा दीप हैं, जिसकी लौ हर पीढी के लिए मार्गदर्शन का प्रकाश बन गई है।
शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान प्राप्त करना नहीं, बल्कि आत्मा को आलोकित करना है। कमला पालीवाल का जीवन इसी आदर्श का जीवंत प्रतीक हैं।

शेखर झा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *