आस्था के महाकुंभ में 20 श्रद्धाुलओं की मौत, करोडो लोगों की मौजूदगी, स्पेशल ट्रेनें रोकी

प्रभात संवाद, 29 जनवरी, जयपुर। कहते हैं कि भगवान का नाम लेना कलयुग में सर्वश्रेष्ठ है लेकिन 144 बाद होने वाले महाकुंभ में त्रिवेणी संगम में स्नान कर धर्म कमाने की कामना हर किसी की है। भारत सबसे बडी जनसंख्या वाला देश है और ऐसे में पूरे देश के लोगों का ध्यान इस ओर है। हर कोई जत्थे के साथ परिवार के साथ या फिर अकेले वहां पहुंचने की कोशिश में लगा है। राज्य सरकार ने अपने स्तर पर हर तरह के प्रबंध किए। लेकिन जब आस्था का ज्वार अपने चरम पर हो तो हर व्यवस्था धरी धराई रह जाती है। ऐसा ही हुआ प्रयागराज महाकुंभ में मौनी अमावस्या के स्नान से पहले। भगदड मची और करीब 20 लोगों के जान गंवाने की सूचना मिल रही है। प्रश्न उठता है कि इसे बदइंतजामी कहा जाए या फिर भी अति अपेक्षा और अति उत्साह, या फिर अंध श्रद्धा भारत में तो पत्थर में भी भगवान हैं, आस्था हो तो मीरा जैसी जिन्होंने कृष्ण की मूर्ति को ही सब कुछ मान लिया क्या फिर अभी महाकुंभ स्नान इतना जरुरी है…

शेखर झा

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